मॉब लिंचिंग या भीड़ की हिंसा के खिलाफ सबसे प्रभावी मुहिम चलाने वाली सामाजिक संस्था ‘नॉट इन माय नेम’ ने दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर केंद्र सरकार के समाज को बांटने वाले नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन में सभी धर्मों के लोगों ने हिस्सा लिया और नागरिकता संशोधन कानून – सीएए के खिलाफ जारी आंदोलन से एकजुटता जताई। इस संस्था के संयोजकों में से एक राहुल ने 18 जनवरी के महत्व को सामने रखते हुए बताया कि आखिर शनिवार 18 जनवरी ही क्यों इस तरह के आयोजन की जरूरत है।
Rahul of 'Not in my Name' briefs the protestors at Jama Masjid about the importance of date 18th January 1948 pic.twitter.com/TRdcNCmEev
— Syed Khurram Raza (@khoormi) January 19, 2020
उन्होंने बताया कि 18 जनवरी 1928 को महात्मा गांधी ने अपना उपवास कई संस्थाओं के लिखित आश्वासन के बाद खत्म किया था। जिन संस्थाओं ने महात्मा गांधी को विश्वास दिलाया था कि वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे सामाजिक तानाबाना भंग हो, उनमें आरएसएस और हिंदू महासभा भी शामिल थीं। राहुल ने बताया कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए 18 जनवरी का विशेष महत्व है।
इसके बाद संस्था की सबा दीवान ने 18 जनवरी 1928 को महात्मा गांधी के सामने रखे गए उस लिखित दस्तावेज के अहम बिंदु लोगों के सामने रखे जो विभिन्न संस्थाओं ने दिए थे। इस घोषणापत्र में भारत के मुसलमानों को विश्वास दिलाया गया था कि उनकी सुरक्षा की जाएगी।
इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता सुहेल हाशमी ने संविधान की प्रस्तावना का उर्दु अनुवाद पढ़ा, जिसे वहां मौजूद सैकड़ो महिला-पुरुषों ने उनके साथ दोहराया। इस विरोध प्रदर्शन में शामिल सिख समाज के प्रतिनिधि दयाल सिंह ने कहा कि जब तक इस देश में मुसलमान और सिख हैं, तब तक इस देश के सेक्युलरिज़्म यानी धर्मनिरपेक्षता को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए भी आरएसएस जिम्मेदार थी और आज के नफरत भरे हालात के लिए भी संघ ही जिम्मेदार है। उन्होंने व्यंगात्मक लहजे में कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने देश के सभी धर्मों, सामिक तबकों को एकजुट कर दिया।
Saba Dewan readin seven points on which all organizations signed for protection of Indian Muslims pic.twitter.com/i7zsldRKAi
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कार्यक्रम में शामिल जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और यूपीएससी के पूर्व सदस्य पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि हिंसा का विरोध करना ही असली मानवता है। उन्होंने 18 जनवरी के इतिहास के बारे में बताया कि गांधी जी की भूख हड़ताल खत्म करने के लिए आरएसएस और हिंदू महासभा ने इसलिए हस्ताक्षर किए थे क्योंकि उनमें से किसी की हिम्मत नहीं थी कि वह गांधी जी की मृत्यु की जिम्मेदारी अपने सिर ले पाते। गांधी जी का व्यक्तित्व अहिंसा के सिद्धांत पर था।
Puroshattam Agarwal addressing Protestors at Jama Masjid pic.twitter.com/sKbmYOdlp0
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इस विरोध प्रदर्शन में सिख समाज ने गुरु ग्रंथ साहिब की कुछ पंक्तियां पढ़ीं तो पुरुषोत्तम अग्रवाल ने गीता के उपदेश सामने रखे। वहीं पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जॉन दयाल ने ईसाई समाज के लोगों के साथ राष्ट्रीय एकता और मानवता के लिए कुछ गीत गाए। कार्यक्रम में ईसाई समुदाय के कई प्रतिनिधियों ने भी वहां आंदोलन कर रहे लोगों को संबोधित किया।
John Dayal along with members of Christian community at Anti CAA protest at Jama Masjid pic.twitter.com/aaCUdoHy1j
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इस विरोध प्रदर्शन में भारी तादाद में लोग शामिल हुए। इनमें स्थानीय लोगों के अलावा दूसरी जगह के लोगों ने भी बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। पूरे कार्यक्रम की खात बात यह रही कि कहीं भी कोई अव्यवस्था नहीं दिखी। शुरु में इस कार्यक्रम के मुताबिक पुरानी दिल्ली के लाल कुआं इलाके से कैंडिल मार्च शुरु होकर जामा मस्जिद आना था, और वहां सर्वधर्म सभा होनी थी। लेकिन लाल कुआं पर भी स्थानीय महिलाओँ ने धरना दिया इसलिए वहां भी लोगों ने सीएए के खिलाफ प्रदर्शन किया और फिर बाद में जामा मस्जिद पर प्रदर्शन किया गया।
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